अजीब परिस्थितियां’: आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच मध्यस्थता समझौता, सुप्रीम कोर्ट ने ‘बलात्कार का मामला’ रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी और शिकायतकर्ता (अभियोक्ता) के बीच हुए मध्यस्थता समझौते को ध्यान में रखते हुए बलात्कार के एक मामले को खारिज कर दिया है। इस मामले में लड़की ने आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी कि उसने उसे तलाकशुदा बताकर उसके साथ यौन संबंध बनाए। आरोपी ने बाद में समझौता विलेख के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए दिल्ली हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने यह भी तर्क दिया कि अभियोक्ता का उसके दूसरे पति से तलाक नहीं हुआ था और इसलिए, कोई कानूनी विवाह नहीं हो सकता था, शादी का वादा तो बिल्कुल भी नहीं। लेकिन हाईकोर्ट ने यह देखते हुए मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया कि अभियोक्ता ने अपनी शिकायत में बलात्कार और उसे जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया था।

हाईकोर्ट ने भी याचिका को खारिज करने के लिए परबतभाई अहीर @ परबतभाई भीम सिंह भाई बनाम गुजरात राज्य (2017) 9 एससीसी 641 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि हत्या, बलात्कार और डकैती जैसे अपराधों को उचित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता है, हालांकि पीड़ित या पीड़ित के परिवार ने विवाद को सुलझा लिया हो। इस आदेश को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस तथ्य पर ध्यान देने के बाद कि दंपति काफी समय से साथ रह रहे थे और इस बीच एक बच्चे का जन्म हुआ, अदालत ने उन्हें मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया।

जब यह मामला पिछले हफ्ते जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच के सामने आया, तो यह बताया गया कि वे बच्चे के भरण-पोषण और रखरखाव तक सीमित एक मध्यस्थता समझौते पर पहुंच गए हैं। बेंच ने कहा, “इन तथ्यों और शिकायतकर्ता की ओर से की गई प्रस्तुतियों के संबंध में – जो विवाद नहीं करता है कि यह अभियोजन को आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त मामला नहीं हो सकता है, इस न्यायालय का विचार है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया जाना चाहिए। वर्तमान मामले की अजीबोगरीब परिस्थितियों में, हाईकोर्ट के आक्षेपित निर्णय को रद्द किया जाता है, प्राथमिकी और सभी परिणामी कार्यवाही रद्द की जाती है।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश किसी भी अन्य लंबित कार्यवाही में पक्षकारों की दलीलों के आड़े नहीं आएगा या किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगा।

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