हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, तीसरा बच्चा होने पर नौकरी के लिए ख़त्म हो जाएगी योग्यता

अगर नौकरी के दौरान तीसरा बच्चा हुआ तो आपकी नौकरी छिन सकती है. ऐसा ही एक मामला ग्वालियर से सामने आया. मध्य प्रदेश के ग्वालियर हाईकोर्ट (Gwalior High Court) ने सहयाक बीज प्रमाणन अधिकारी के नौकरी से अयोग्य करार दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनावई करने से इनकार कर दिया. सहायक बीच प्रमाणन अधिकारी को नौकरी के दौरान तीसरा बच्चा होने पर नौकरी से अयोग्य करार दिया गया था. इस फैसले के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सिविल सेवा अधिनियम 1961 के तहत अगर तीसरा बच्चा हुआ तो वह व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाएगा, इसलिए इस अधिनिमयम के तहत आप नौकरी के लायक नहीं है.

बता दें कि 2009 में व्यापमं के माध्यम से आयोजित होने वाली सहायक बीज प्रमाणन अधिकारी की परीक्षा लक्ष्मण सिंह बघेल ने भी दी थी. बघेल ने परीक्षा की मेरिट में सातवां स्थान हासिल किया था. उस समय 30 जून 2009 को बघेल के दो बच्चे थे और इसके बाद बघेल को नवंबर माह में तीसरा बच्चा हुआ था. ज्वाइनिंग के समय बघेल ने शपथ पत्र में सिर्फ दो बच्चे की बात को बताया था. लेकिन बाद में मूल निवास पत्र और राशन कार्ड में उन्होंने तीसरे बच्चे के बारे में जानकारी दी थी.

याचिकाकर्ता ने दी थी ये दलील

मामला सामने आने पर जब विभाग द्वारा जांच की गई तो बघेल ने बच्चे के जन्म 2012 बताया था. सही जानकारी न देने के चलते विभाग ने लक्ष्मण सिंग के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराने के लिए अनुशंसा की थी. लक्ष्मण सिंह ने याचिका दायर करते हुए तर्क दिया कि जब उसने इस नौकरी के लिए अप्लाई किया था तो वह दो बच्चों का पिता था और परीक्षा देने और सेलेक्शन होने के बाद वह तीसरे बच्चे का पिता बना इसलिए यह कानून उस पर लागू नहीं होता और उम्मीदवार की योग्यता उसके आवेदन जमा करने की तारीख से मापी जाती है. उसने कहा कि नियुक्त के बाद उसे तीसरे बच्चे की प्राप्ति हुई इसलिए उसे विभाग ने गलत तरीके से नौकरी से निकाला है.

सिंगल बेंच पर भी दायर की थी याचिका

इससे पहले लक्ष्मण सिंह बघेल ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच पर भी याचिका दायर की थी, लेकिन सिंगल बेंच की तरफ से भी बघेल की याचिका को खारिज कर दिया गया था. डबल बेंच के न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने याचिका पर कहा कि इस याचिका पर सिंगल बेंच से अलग दृष्टिकोण होने का कोई खास कारण नहीं दिखता इसलिए याचिकाकर्ता को किसी भी प्रकार राहत नहीं दी सकती.

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