जहां महिला रहती है, उसी स्थान पर कर सकती है आईपीसी की धारा 498ए के तहत शिकायत, सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाज़त

सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत दायर शिकायतों पर विचार करने वाली अदालतों के अधिकार क्षेत्र के संबंध में अपने विचार फिर से दोहराए हैं। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला को उसकी शिकायत उस स्थान पर अदालत में दायर करने की अनुमति दे दी है, जहां वह निवास कर रही थी।

प्रीति कुमारी बनाम बिहार राज्य” मामले में न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार कर लिया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उस स्थान पर कार्रवाई की कोई वजह या कारण नहीं है, जहां पर वह रहती है।

पीठ ने कहा कि यह मामला ‘रुपाली देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले में दिए गए निर्णय द्वारा कवर होता है। ‘रूपाली देवी’ मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने माना था कि पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के कृत्यों के कारण जब पत्नी अपने पति का घर छोड़ देती है या उसे घर से निकाल दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में यह मामले की तथ्यात्मक स्थिति पर निर्भर करता है कि महिला जहां पर भी शरण लेती है, वह उस स्थान पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत अपराधों का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कर सकती है।

हाईकोर्ट ने इस मामले में ( जिसे रूपाली देवी मामले में फैसला सुनाए जाने से पहले तय किया गया था ) महिला के पति द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया था कि शिकायतकर्ता महिला ने उस पर हुई क्रूरता के जो भी आरोप लगाए हैं, वे सभी तथाकथित रूप से उसके पति के घर में उस पर हुए थे या जहां उसका पति नौकरी कर रहा था। ऐसे में इस मामले में सीआरपीसी की धारा 178 और 179 की कोई प्रयोज्यता नहीं होगी। यदि ‘कार्रवाई के कारण’का कोई हिस्सा इस शहर में नहीं हुआ है या इस शहर में कोई ऐसी क्रूरता महिला पर नहीं की गई है।

रूपाली देवी मामले में,पीठ ने यह भी कहा था- ”भले ही पति के घर में की गई शारीरिक क्रूरता के कार्य बंद हो गए हों और माता-पिता के घर में इस तरह की हरकतें न की गई हों, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं हो सकता है कि जिस मानसिक आघात और मौखिक हरकतों सहित पति के जिन कार्यों से परेशान होकर पत्नी को उसका घर छोड़ना पड़ा और माता-पिता के साथ आश्रय लेना पड़ा, उन सभी बातों से होने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव माता-पिता के घर पर भी बने रहते हैं।

शारीरिक क्रूरता या अपमान और अपमानजनक मौखिक आदान-प्रदान से उत्पन्न मानसिक क्रूरता माता-पिता के घर में जारी रहती है, भले ही ऐसी जगह पर शारीरिक क्रूरता का कोई भी कार्य नहीं किया जा सके।

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