सिर्फ इसलिए कि आपराधिक मामलों के बारे में सही घोषणा की गई है, नियोक्ता को किसी उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक नियोक्ता को केवल इसलिए उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता क्योंकि उम्मीदवार ने आपराधिक मामलों की सही घोषणा की है। अदालत ने कहा कि नियोक्ता के पास उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास पर विचार करने का अधिकार है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने हाईकोर्ट के ‌फैसले को रद्द करते हुए उक्त टिप्‍पण‌ियां की। पीठ ने कहा, यदि नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के आरोप से एक व्यक्ति को संदेह का लाभ देते हुए या गवाहों के मुकर जाने के कारण बरी कर दिया जाता है तो यह उसे स्वचालित रूप से रोजगार के लिए हकदार नहीं होगा, वह भी अनुशासित बल में। हाईकोर्ट के फैसले में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को कांस्टेबल पद पर एक उम्मीदवार की नियुक्ति का निर्देश ‌‌दिया गया था।

इस मामले में, उम्मीदवारी को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उम्मीदवार फिरौती की मांग के लिए अपहरण के अपराध में शामिल पाया गया था। यद्यपि उसे उक्त मामले में बरी कर दिया गया था क्योंकि शिकायतकर्ता, जिसका अपहरण किया गया था, पक्षद्रोही हो गया। प्राधिकरण ने कहा कि उसकी उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि उसे नैतिक भ्रष्टाचार से आरोप से सम्मानजनक रूप से बरी नहीं किया गया था। अपील में पीठ ने पहले के निर्णयों का उल्लेख किया और कहा कि यदि अदालत ने बरी करने का निर्णय, रिकॉर्ड पर मौजूद भौतिक प्रमाणों और तथ्यों से प्रभाव‌ित होकर लिया है, जिनका निष्कर्ष यह है कि मामले में आरोपी को झूठा फंसाया गया है या दोष सिद्ध नहीं हो पाया, और आरोपी की सफाई को उचित पाया गया है तो उसे सम्मानजनक रूप से बरी होना माना जाता है। दूसरे शब्दों में, यदि अभियोजन अन्य कारणों से दोष साबित नहीं कर सका और अदालत द्वारा ‘सम्मानपूर्वक’ बरी नहीं किया गया तो इसे ‘सम्‍मानजनक’ बरी होने के अलावा अन्य माना जाएगा और कार्यवाही का पालन किया जाएगा।

अदालत ने अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया (2016) 8 SCC 471 का उल्लेख करते हुए कहा, यह स्पष्ट है कि नियोक्ता को उम्मीदवार को रोजगार में शामिल करने का निर्णय लेते समय सरकारी आदेशों/निर्देशों/नियमों के अनुसार उम्मीदवार की उपयुक्तता पर विचार करने का अधिकार है। जघन्य/गंभीर प्रकृति के अपराधों के संबंध में तकनीकी आधार पर दोषमुक्ति, जो एक साफ बरी नहीं है, नियोक्ता के पास पूर्ववृत्त के रूप में उपलब्ध सभी प्रासंगिक तथ्यों पर विचार करने का अधिकार हो सकता है, और कर्मचारी को जारी रखने के संबंध में उचित निर्णय ले सकता है। यहां तक ​​​​कि अगर कर्मचारी द्वारा ट्रायल के बारे में सच्ची घोषणा की गई है, तब भी नियोक्ता को पूर्ववृत्त पर विचार करने का अधिकार है और उसे उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि पुलिस बल में शामिल होने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को अत्यंत ईमानदार और त्रुटिहीन चरित्र और सत्यनिष्ठा का व्यक्ति होना चाहिए। अपील को अनुमति देते हुए अदालत ने कहा, “जैसा कि यहां ऊपर चर्चा की गई है, कानून अच्छी तरह से स्थापित है। यदि किसी व्यक्ति को नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के आरोप से संदेह का लाभ देते हुए या गवाहों के मुकर जाने के कारण बरी किया जाता है तो यह स्वचालित रूप से उसे अनु्शासित बल में रोजगार पाने का हकदार बनाता। नियोक्ता को स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा जारी परिपत्रों के अनुसार उसकी उम्मीदवारी पर विचार करने का अधिकार है। केवल कथित अपराधों का खुलासा और परीक्षण का परिणाम पर्याप्त नहीं है। उक्त स्थिति में, नियोक्ता को उम्मीदवार को नियुक्ति देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

केस और सिटेशन: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मिठू मेडा एलएल 2021 एससी 545

मामला संख्या और तारीख: CA 6238 OF 2021 | 6 October 2021

कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जेके माहेश्वरी

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