सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान साक्ष्य की दृष्टि से अमान्य, दोषसिद्धि के लिए भरोसे लायक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान का इस्तेमाल केवल विरोधाभासों और/अथवा चूक को साबित करने के लिए किया जा सकता है।” सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 के तहत दर्ज बयान साक्ष्य की दृष्टि से अमान्य है और आरोपी की दोषसिद्धि के लिए उस पर भरोसा या उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में ट्रायल कोर्ट एवं हाईकोर्ट के दोषसिद्धि के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान का इस्तेमाल केवल विरोधाभासों और/अथवा चूक को साबित करने के लिए ही किया जा सकता है।

ट्रायल कोर्ट ने बाल किशन नामक एक व्यक्ति की हत्या के लिए पर्वत सिंह एवं अन्य को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 149 के साथ धारा 302 धारा के तहत दोषी ठहराया था। ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों में से एक के सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान पर भरोसा किया था। महिला गवाह ने कहा था कि आरोपियों के पास लाठियां थीं। बेंच ने रिकॉर्ड पर लाये गये साक्ष्य पर विचार करने के बाद कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत अभियोजन पक्ष के गवाहों के दर्ज बयान एवं अपीलकर्ताओं की हैसियत से कोर्ट के समक्ष दिये गये बयान विरोधाभासी हैं, उनमें चूक हैं और बयान बदलते रहे हैं। बेंच ने कहा कि आरोपियों के पास लाठियां होने की बात अभियोजन पक्ष के गवाहों ने पहले नहीं कही थी।

पीठ ने कहा

कानून के तय नियमों के अनुसार सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान साक्ष्य में अमान्य होता है और आरोपी की दोषसिद्धि के लिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कानून के तय नियमों के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान का इस्तेमाल केवल विरोधाभासों और/या चूक को साबित करने के लिए ही किया जा सकता है। इसलिए हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत अभियोजन पक्ष की गवाह संख्या आठ के उस बयान पर भरोसा करके गलती की है कि अपीलकर्ताओं के हाथ में लाठियां थीं।बेंच ने यह कहते हुए आरोपियों की दोषसिद्धि के हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त कर दिया कि साक्ष्यों में विरोधाभास, चूक और बदलाव का लाभ आरोपियों के पक्ष में जाना चाहिए।

केस का नाम : पर्वत सिंह बनाम मध्य प्रदेश सरकार

केस नं. : क्रिमिनल अपील नं. 374/2020

कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह

कोरम : सीनियर एडवोकेट ए. के. श्रीवास्तव और एडवोकेट मधुरिमा मृदुल

Leave a comment

Design a site like this with WordPress.com
Get started