कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि स्तनपान कराना एक एक मां का अधिकार है.
हुस्ना बानो बनाम स्टेट ऑफ़ कर्नाटक मामले में कोर्ट का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार ये एक मां का अधिकार है.
इस मामले में न्यायाधीश कृष्णा एस दीक्षित का कहना था कि जैसे मां का स्तनपान कराने का अधिकार है इसी तरह एक नवजात शिशु का भी मां के दूध पर अधिकार है.
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दरअसल ये मामला कर्नाटक का है जहां एक बच्चे को जन्म देने वाली मां (जेनेटिक मदर) और पालने वाली मां (फॉस्टर मदर) आमने-सामने थीं. ये दोनों मांएं कोर्ट से बच्चे की कस्टडी या उसे रखने के लिए इजाज़त की अपील कर रही थीं. और इस मामले में कोर्ट ने जेनेटिक मदर के पक्ष में फ़ैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रणय महेश्वरी इस फ़ैसले को स्वागत योग्य बताते हुए कहते हैं कि इसे फ़ैसले के तौर पर ही नहीं बल्कि इसे दो पार्टियों के बीच समाधान निकालने वाले नज़रिए से भी देखा जाना चाहिए।
वे कहते हैं, “एक मां ने नौ महीने कोख में बच्चा रखा फिर जन्म दिया. बच्चा कोई वस्तु नहीं है कि उसे एक के बाद दूसरे को दे दिया जाए.
क्या है कहानी?
इस बच्चे का जन्म साल 2020 में बेंगलुरु के एक अस्पताल में हुआ लेकिन वहां से वो चोरी हो गया. इस चोर ने इस बच्चे को सरोगेसी से पैदा हुआ बताकर फॉस्टर पेरेंट्स या पालक माता-पिता को बेच दिया.
लेकिन फिर पुलिस ने चोर को पकड़ा और उसके ज़रिए वो फॉस्टर पेरेंट्स तक पहुंची.
इसके बाद ये मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में पहुंचा जहां जन्म देने वाली मां और पालक मां ने बच्चे की कस्टडी या उसे अपने-अपने पास रखने की अपील की।
फॉस्टर मां की तरफ़ से वकील ने ये तर्क दिया कि इस मां ने बच्चे की कई महीनों तक बड़े प्यार से देखभाल की है इसलिए बच्चा रखने का अधिकार उसे दिया जाना चाहिए, साथ ही ये भी कहा कि बच्चे को जन्म देने वाली यानी जेनेटिक मदर के पास पहले से दो बच्चे हैं जबकि फॉस्टर मां के पास एक भी बच्चा नहीं है.
इस दलील पर जन्म देने वाली मां की तरफ़ से वकील ने जवाब में कहा कि फॉस्टर मदर जो कह रही है वो सच हो सकता है लेकिन बच्चे को लेकर दावा पैदा करने वाली मां का ही होना चाहिए.
इस पर कोर्ट का कहना था, ”ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि (इस मामले में)सुंदर बच्चे को बिना किसी ग़लती के मां का दूध और स्तनपान कराने वाली मां को अभी तक बच्चा नहीं मिला है. एक सभ्य समाज में ऐसी चीज़ नहीं होनी चाहिए थी.”
साथ ही कोर्ट ने कहा कि बच्चे का पालन करने वाली की तुलना में बच्चे पर ज्यादा दावा उस मां का है जिसने उसे जन्म दिया है और उसके कारण भी बताए.
कोर्ट का कहना था,” इस मामले पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क़ानून पर संक्षिप्त में चर्चा हुई है और उसके मुताबिक ये मान्य होना चाहिए स्तनपान कराना एक मां का अधिकार है और वैसे ही ये एक नवजात का भी अधिकार है.”
लेकिन यहां एक सवाल ये उठता है कि एक सरोगेट मदर के मामले या जो मां अपना बच्चा पैदा होने के बाद गोद देने का फैसला कर चुकी है, उस स्थिति में ये अधिकार किसका होगा?
सरोगेसी के मामले में किसका अधिकार
वकील प्रणय महेश्वरी के अनुसार, “सरोगेसी में सरोगेट मदर और एक दंपति के बीच करार होता है. और करार के अनुसार बच्चे की पैदाइश के बाद सरोगेट मदर को तय किए गए दिन पर दंपति को बच्चा सौंप देना होता है. वे ऐसा करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्य होती हैं. कोई सरोगेट मदर केवल इस आधार पर बच्चे को नहीं रख सकतीं कि वे स्तनपान कराना चाहती हैं. उसे करार के मुताबिक चलना होगा नहीं तो सोरोगेट मदर के ख़िलाफ़ करार के उल्लंघन का मामला दर्ज हो सकता है.”
वकील सोनाली करवासरा जून तर्क देती हैं कि सरोगेसी अभी एक बिल की शक्ल में है और वो क़ानून नहीं बना है ऐसे में सरोगेट मदर क़ानूनी अधिकार कैसे मांग सकती है.
उनके अनुसार, “अडॉप्शन या गोद लेने के क़ानून में मां के अधिकारों से ज़्यादा बच्चे के वेल्फ़ेयर को सबसे ज़्यादा अहमियत दी गई है. अगर इसमें ये कहा जाता है कि बच्चे के लिए मां का दूध ज़रूरी है तो वो अधिकार में आएगा. लेकिन अगर आपने बच्चा गोद दे दिया है तो आप उस बच्चे पर अधिकार खो देते हैं. भविष्य में इस पर कोई ऐसा फ़ैसला आ सकता है लेकिन अभी इस पर कुछ नहीं है कि अगर स्तनपान कराने वाली मां ने अपने बच्चे को गोद दे दिया है तो उसके क्या अधिकार होंगे.”
वे कहती हैं, “ग्राउंड रूल यही है, अदालतें भविष्य में भी ऐसा कुछ नहीं करेंगी जिसमें बच्चे का वेल्फ़ेयर न हो और जिसको स्तनपान कराने वाली मां के अधिकारों से संतुलन में लाया जा सकता है.”
सरोगेट मां की नहीं हो सकती आम मां से तुलना
गुजरात के एक निजी आईवीएफ़ क्लीनिक में डॉक्टर नयना पटेल का कहना है कि दिशानिर्देशों के अनुसार एक सरोगेट मदर बच्चा पैदा होने के छह हफ़्ते तक अपना दूध दे सकती है.
साथ ही वे कहती हैं, “सरोगेट मामले में ये साफ़ होता है कि जेनेटिक्ली बच्चा किसी और का है और वो केवल बच्चे को जन्म दे रही है तो आम मां के साथ उसकी तुलना ही नहीं हो सकती है.”
वो आगे बताती हैं कि एक सरोगेट स्तनपान नहीं करा सकती और ऐसा इसलिए होता है ताकि बच्चे और सरोगेट मदर में कोई बॉंडिंग न बने. ऐसे में सरोगेट मां पंप से निकाल कर बोतल के ज़रिए ही अपना दूध बच्चे को पिलाती है.
डॉ नयना पटेल बताती हैं, “15 दिन तो एक सरोगेट मां बच्चे को अपना दूध दे सकती है और अगर दंपति चाहे तो ये अवधि बढ़ भी सकती है लेकिन ये दोनों की सहमति से ही हो सकता है और इस मामले में कोई एक पक्ष फ़ैसला नहीं ले सकता है क्योंकि ये करार के आधार पर होता है और ये दोनों पार्टियां इसे स्वीकार करती हैं.”
साथ ही उनका कहना है कि उनके पास सरोगेसी के ऐसे मामले भी आते हैं जिसमें से 50 फ़ीसदी महिलाएं अब इंड्यूसड लेक्टेशन यानी हार्मोन के ज़रिए स्तनपान शुरू करने की प्रक्रिया अपनाती हैं.
ये महिलाएं सरोगेट मदर के तकरीबन छठे महीने तक पहुंचने पर इस प्रक्रिया की शुरुआत कर देती हैं और ऐसे में कम से कम 40 फ़ीसदी महिलाओं को दूध बनने लग जाता है.
क्या होता है इंड्यूसड लेक्टेशन
मैक्स अस्पताल में प्रिंसिपल कंसल्टेंट और स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ. भावना चौधरी जानकारी देती हैं कि इंड्यूसड लेक्टेशन वो प्रक्रिया होती है जिसमें एक महिला ने बच्चे को जन्म तो नहीं दिया है लेकिन उसे स्तनपान के लिए कृत्रिम तरीके से तैयार किया जाता है.
और इस प्रक्रिया के तहत इस महिला को हार्मोन और अन्य दवाएं देकर स्तनपान के लिए तैयार किया जाता है. वो बताती हैं कि इस दूध की गुणवत्ता बच्चा पैदा करने वाली मां के दूध जैसी ही होती है.
इसके फायदे और नुक़सान बताते हुए डॉ भावना कहती हैं, “अगर कोई दंपति ने सरोगेसी या दूधमुंहे बच्चे को गोद लिया है तो एक महिला इस कृत्रिम प्रक्रिया को अपनाकर बच्चे को अपना दूध पिला सकती है और दोनों में एक भावनात्मक जुड़ाव भी हो जाता है.”
लेकिन चूंकि ये कृत्रिम प्रक्रिया होती है तो महिलाओं के शरीर में जाने वाले ये हार्मोन या दवाओं की वजह से एक महिला के शरीर में थोड़े साइड इफेक्ट्स या दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं.
कर्नाटक में आए इस ताज़ा मामले में फॉस्टर मदर का ये कहना था कि उनके बच्चे नहीं है तो उन्हें बच्चा रखने दिया जाए.
इस पर कोर्ट का कहना था, “बच्चे कोई चल संपत्ति नहीं है और क्योंकि वो संख्या में कम या ज़्यादा हैं तो उस आधार पर उसे जेनेटिक मदर और अजनबी में बांट दिया जाए.”
बाद में कोर्ट को बताया गया कि फॉस्टर मदर ने बच्चे की कस्टडी जेनेटिक मदर को दे दी है जिसके बदले में जेनेटिक मां ने फॉस्टर मदर को बच्चे को अपनी इच्छा अनुसार मिलने की अनुमति दे दी है.
इस पर कोर्ट का कहना था, “दो अलग-अलग धर्मों, पृष्ठभूमि से आने वाली इन दोनों महिलाओं ने जो भाव दिखाया है वो आज के ज़माने में बहुत कम ही दिखता है. बहरहाल इस सुंदर बच्चे की कस्टडी को लेकर क़ानूनी लड़ाई एक सुखद नोट पर हमेशा के लिए ख़त्म होती है.”
